दे दें सुगंध अपनी
जब भी व्यक्ति किसी परिस्थिति का सामना करता है तो उसके लिए सबल सहारा साहित्य या प्रेरणादायी प्रसंग बनते हैं। ऐसा ही एक प्रेरक प्रसंग मुझे सदैव हर छोटी-मोटी विपत्ति, कठिन परिस्थिति में प्रेरणा देता है।
दैनिक जीवन में संकटों से परेषान एक लड़की रसोई में काम करती हुई अपनी मां का आंचल पकड़ कर पूछती है, ‘मां थक गई हंू परिस्थितियों का सामना करते-करते। तुम ही बताओ क्या करू?’ मां ने प्रष्न सुनकर तीन बर्तनों में गर्म करने के लिए पानी रख दिया। एक बर्तन में गाजर, दूसरे में अंडा तथा तीसरे में कॉफी के बीज डाल दिए। ढक्कन लगा दिया तथा दस मिनट तक पकने दिया। तत्पष्चात पतीले में से गाजर निकालकर बाहर रखी और बेटी से बोला की उसे छूकर देखो। बेटी ने कहा मां यह तो नरम पड़ गई है। मां ने अंडा निकाला और उसे छूने को कहा। लड़की ने कहा कि मां यह तो बिल्कुल सख्त हो गया है। कॉफी के बीज वाले बर्तन का ढक्कन जैसे ही हटाया चारो तरफ कॉफी की सुगंध फैल गई। मां ने बेटी से पूछा कि वह क्या समझी। बेटी ने इंकार में सिर हिला दिया। मां ने उसे समझाया कि बेटा गाजर बहुत सख्त थी, किन्तु विपरीत परिस्थितियों को झेलते ही नरम पड़ गई। अंडे के अंदर तरल द्रव्य था जो गरम पानी में उबलकर सख्त हो गया। कॉफी के बीजों ने अपना व्यक्तित्व नश्ट न करते हुए भी पानी को महका दिया और उत्कृश्ट सुगंध से भर दिया।’
मां ने समझाया कि गाजर, अंडा और कॉफी के बीजों ने एक ही जैसी विपरीत परिस्थिति का सामना किया। समान विपरीत परिस्थिति का सामना करने पर तीनों की प्रतिक्रिया भिन्न-भिन्न थी। उबलते हुए पानी का सामना करने पर अकड़ी हुई गाजर नरम पड़ गई। नाजुक तरल पदार्थ से भरा अंड़ा खोलते पानी का संग पाकर ठोस हो गया। पीसे हुए नन्हें कॉफी बीज अनोखे थे। उन्होनें पानी के गुणों में ही परिवर्तन कर दिया। मां ने बेटी से पूछा कि तुम क्या बनना चाहोगी, गाजर, अंडा या फिर कॉफी के बीज?
राषोबा षिक्षण महाविद्यालय में षिक्षण में स्नातक की डीग्री के साथ-साथ जीवन जीने की कला भी सिखाई जाती है। इसी लिए हम सबसे अलग हैं।
डॉ0 कुमुद बंसल
(अध्यक्षा)