दर्शन-निष्णात, अध्यात्मनिष्ठ, मनोविज्ञानवेत्ता, संस्कृति-प्रेमी, प्रकृति-अनुरागी, विश्वयात्री, राष्ट्र-आराधक, सामाजिक चिन्तक, शिक्षाशास्त्री, अधिवक्ता, प्राध्यापक, इतिहासकार, अनुवादक, सम्पादक, प्रशासक, समाजसेवी, हरियाणा साहित्य अकादमी (पंचकूला) की पूर्व-निदेशक और अंग्रेज़ी-हिन्दी में चालीस से अधिक ग्रन्थों की लेखक/सम्पादक डॉ. कुमुद रामानंद बंसल का जन्म, श्रीमती शोभादेवी एवं श्री रामानंद बंसल की प्रथम संतान के रूप में, 24 मार्च 1956 ई. को, होली से दो दिन पहले, सिरसा में हुआ। रईसी ठाठ-बाट में पलीं-बढ़ीं कुमुद की विद्यालयीय शिक्षा ‘बिरला बालिका विद्यापीठ, पिलानी’ में हुई। स्नातक की उपाधि मेहरचन्द महाजन डीएवी महाविद्यालय, चंडीगढ़ से प्राप्त करने के उपरान्त आपने विधि-स्नातक, स्नातकोत्तर (दर्शनशास्त्र) और जर्मन भाषा में एडवांस डिप्लोमा की उपाधियाँ पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से अर्जित कीं। आपने पुर्तगाली भाषा में भी एक अल्पावधि कोर्स, बरलिट्स स्कूल ऑफ लैन्ग्विज़िज, फ्रैंकफर्ट (जर्मनी) से किया। सन् 2014 में, आपकी अन्यतम उपलब्धियों के लिए, विक्रमशीला हिन्दी विद्यापीठ ने, आपको अपनी मानद उपाधि ‘विद्यावाचस्पति’ (डॉक्टरेट) से अलंकृत किया।
डॉ. कुमुद बंसल का कार्यक्षेत्र अत्यंत विस्तृत रहा है। विधिवत्प्रा ध्यापन और वकालत की अवधि में आप ‘अधिवक्ता परिषद्, हरियाणा’ की महासचिव रहीं। ‘अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद्’ की छह वर्षों तक सचिव रहीं। ‘इण्डियन लॉ इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली’, ‘स्थायी लोक अदालत, सिरसा’ और ‘मीडिएशन-कम कॅन्सिलिएशन सेन्टर’ (पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय) की भी आप सदस्य थीं। कानून विषयक आपकी अवधारणा की एक झलक, आपके द्वारा संपादित, ‘न्याय ममः धर्म’ नामक पत्रिका के दो खण्डों में देखी जा सकती है।
हरियाणा के शैक्षणिक और अकादमिक क्षेत्र में भी आपका महत्त्वपूर्ण प्योगदान है। प्रतिष्ठित ‘सिरसा एज्यूकेशन सोसायटी’ की अवैतनिक कोषाध्यक्ष महासचिव और उपाध्यक्ष रहीं। राशोबा शिक्षण महाविद्यालय चलाने वाली ‘शोभादेवी रामानंद बंसल फाउंडेशन’ की अध्यक्ष हैं; चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय, सिरसा से
सम्बद्ध शिक्षण-महाविद्यालयों की एसोसिएशन की अध्यक्ष तथा हरियाणा के समस्त बी.एड-महाविद्यालयों की एसोसिएशन की महासचिव रही है ं। वर्षों-पूर्व आप ‘साक्षरता-अभियान’ में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभा चुकी हैं और इस समय चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय, सिरसा के ‘एंटी रैगिंग सैल’ की प्रभावशाली सदस्य
हैं। अपनी शैक्षणिक सोच को साकार करने के लिए कुमुद बंसल ने दो ग्रन्थों – ‘क्रिटिकल एनैलिसिस ऑफ बी.एड कॅरिक्यूलम’ तथा ‘स्वामी विवेकानन्द ऑन एजुकेशन’- का सफल संपादन किया है। फरवरी, 2021 से आप भारत सरकार के ‘कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय’ द्वारा प्रत्यभूत एवं ‘सिरसा एजुकेशन
सोसाइटी’ के संरक्षण में कार्यरत ‘जन-शिक्षण संस्थान, सिरसा (हरियाणा)’ के अध्यक्ष-पद को सुशोभित कर रही हैं।
आपकी, स्वच्छ-स्वस्थ एवं समतामूलक समाज की, परिकल्पना भी अनुपम है। ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ और ‘सेवा भारती’ सरीखी प्रतिष्ठित संस्थाओं के सेवाभावी आयोजनों से तो आप जुड़ी हुई हैं ही, ‘रेडक्रॉस सोसाइटी, हरियाणा’ की भी आजीवन सदस्य हैं। इससे पूर्व आप ‘समाधान’ और ‘सेतु’ संस्थाओं की संस्थापक-महासचिव रह चुकी हैं। ‘व्यसन-मुक्त समाज: एक आकांक्षा’, ‘आपकी सेहत’ तथा ‘आमूल क्राँति की आवश्यकता’ (जिद्दू कृष्णमूर्त्ति की अंग्रेज़ी-पुस्तक ‘अर्जेंसी ऑफ चेन्ज’ का 1986 में किया गया अनुवाद) ग्रन्थों को पढ़कर कुमुद जी के समाज-दर्शन और व्यापक-चिन्तन का, सहज ही, अनुमान लगाया जा सकता है। डॉ. रवीन्द्र शुक्ल की पुस्तक ‘वर्ण व्यवस्था – मौलिक अवधारणा एवम् विकृति’ का आपने अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है। अनुवादित पुस्तक का शीर्षक है –
ष्टंतद ैलेजमउ रू व्तपहपदंस ब्वदबमचज ंदक क्पेजवतजपवदे’. नारी-जाति के उत्थान और सशक्तीकरण में डॉ. कुमुद बंसल की विशेष रुचि रही है। ‘निर्झरिणी नारी सहयोग समिति, सिरसा’ (1994) की संस्थापक-महासचिव बनकर आपने अनेकानेक सार्थक, व्यावहारिक और महिलोपयोगी कदम उठाए हैं। ‘महिला और कानून’ आपकी एक बहुचर्चित-बहुप्रशंसित ेमतपमे है। नारी-जागरण के क्षे़त्र में किए गए आपके उल्लेखनीय कार्यों के दृष्टिगत, राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा, सन् 1997 में, आपको ‘सर्वोत्कृष्टता पुरस्कार’ प्रदान किया जा चुका है।
हरियाणवी सभ्यता एवं संस्कृति की पहचान-परख और प्रचार-प्रसार में कुमुद बंसल का बहुत मन लगता है। इस दृष्टि से उनके ‘आनन्द-उत्सव’, ‘गणपति-वंदन’, और ‘समर्पण’ आदि ग्रन्थ पठनीय-मननीय-ग्रहणीय हैं।
इधर हरियाणा सरकार के ‘सरस्वती शोध-संस्थान’ और ‘सरस्वती विकास-बोर्ड’ से जुड़कर भी आप अपना शोधात्मक-रचनात्मक योगदान दे रही हैं।
भ्रमण की शौकीन डॉ. कुमुद बंसल को, सहज ही, ‘विश्वयात्री’ की संज्ञा दी जा सकती है, क्योंकि अब तक वे, भारत के अतिरिक्त, इन 25 देशों की सामाजिक-सांस्कृतिक-शैक्षणिक यात्रा कर चुकी हैं – स्विट्ज़रलैंड, इटली, फ्राँस, नीदरलैंड, लिखतनशटाईन, आस्ट्रिया, जर्मनी, यूके, यूएसए, मैक्सिको, कनाडा, ब्राज़ील, फिनलैण्ड, नेपाल, भूटान, ग्रीस, डेनमार्क, नार्वे, बैलजियम, सिंगापुर, इण्डोनेशिया, नीदरलैण्ड, स्पेन, अन्डोरा और लक्सम्बर्ग। इन यात्राओं से अर्जित उनके अनुभव-संसार की लम्बाई-चौड़ाई और गहराई-ऊँचाई की मात्र-कल्पना ही की जा सकती है। कुमुद जी, चरैवेति! चरैवेति!!
डॉ. कुमुद बंसल ने अपनी दस पीढ़ियों का इतिहास लिखा है। लगभग 200 वर्षों के काल-खंड पर आधारित ‘जड़ों की तलाश: एक सुखद अनुभव’(फरवरी, 2016) नामक यह विशालकाय ग्रन्थ 10 अध्यायों, 16 अनुभागों और 340 पृष्ठों में समाहित है। इसमें बंसल-परिवार (खजांची-कुटुम्ब) के 656 सदस्यों का स्थूल-सूक्ष्म परिचय दर्ज़ है, साथ ही, तत्कालीन राष्ट्रीय-सामाजिक परिदृश्य का प्रामाणिक/झलकात्मक विवरण भी उपलब्ध है। इस अनुपम, अद्वितीय एवं श्रम- साध्य शोधकार्य में, अपने परिवार के प्रति, डॉ. कुमुद बंसल की निष्ठा, समर्पणशीलता और एकाग्रता, सहज ही, देखी जा सकती है। हरियाणा साहित्य अकादमी की निदेशक रहते हुए ‘हरिगंधा’ पत्रिका के लगभग दो दर्जन संग्रहणीय अंकों/विशेषांकों का तो आपने सफल-कुशल संपादन किया ही है, युवा लेखकों और विद्वानों के लिए ‘शब्दों की उड़ान’, ‘गद्य-सागर’, ‘कथा-गगन’, ‘काव्य-पवन’ ‘नाटक-धरा’, ‘संस्कृति एवं लोक-साहित्य’, ‘जीवन- प्रबन्धन एवं स्वामी विवेकानन्द’, ‘नैतिक मूल्य एवं चरित्र-निर्माण’, ‘दशम गुरुः जीवन-दर्शन’, ‘हरियाणा का लोक-साहित्य’, ‘हमारी हिन्दी’, ‘साहित्य के बरगद’,
‘लेखन ऊर्जा-उत्प्रेरण’, ‘विस्तार’ और ‘नवांकुर’ आदि ग्रन्थों का संपादन-प्रकाशन एवं निःशुल्क वितरण करके भी एक कीर्त्तिमान स्थापित किया है।
डॉ. कुमुद बंसल, मूलतः एक साहित्यकार ही हैं। बचपन से ही वे डायरी लिखने लगी थीं। विश्व के प्रत्येक श्रेष्ठ लेखक की अनुवादित पुस्तक का आप पारायण कर चुकी हैं। उनके द्वारा अब तक लिखित/सम्पादित हिन्दी-अंग्रेज़ी ग्रन्थों की संख्या 40 का आंकड़ा पार कर चुकी है। इनमें से आठ कविता-संग्रह, पाँच हाइकु-संग्रह और दो ताँका-संग्रह विशेष उल्लेखनीय हैं। ‘मन संन्यास और तन एकांतवास’ की प्रवृत्ति के वशीभूत, आयु-वृद्धि के साथ-साथ, डॉ. बंसल के कदम अध्यात्म-जगत् की ओर बढ़ चले हैं। परम कृष्ण-भक्त कुमुद जी का
सनातन-धर्म में अटूट विश्वास है। महर्षि अरविन्द के ‘इन्टिग्रॅल योग’ की अवधारणा ने उन्हें सर्वाधिक प्रभावित किया है। आप ‘इस्कॉन’ की आजीवन सदस्य हैं, भारतीय जीवन-मूल्यों और संस्कारों की सहयात्री हैं, प्रकृति-प्रेमी हैं तथा भारतीय एवं पश्चिमी शास्त्रीय-संगीत की शौकीन हैं। प्रमुखतया, यही प्रवृत्तियाँ कुमुद जी की
साहित्यिक यात्रा का आधार-स्तम्भ हैं।
अपने दीर्घ प्रशासनिक-अकादमिक-शैक्षणिक-साहित्यिक अनुभव के साथ फरवरी, 2016 में जब कुमुद बंसल हरियाणा साहित्य अकादमी की निदेशक
नियुक्त हुईं, तो मानो अकादमी के भाग्य ही खुल गए। गत 50 वर्षों में अकादमी ने पहली बार अंगड़ाई ली और सफलता के नये-नये सोपानों पर चढ़ती चली गयी। वास्तव में, डॉ. कुमुद बंसल एक कुशल प्रशासक हैं, प्रभावी वक्ता हैं, आत्मविश्वास का भण्डार हैं, सफल योजनाकार हैं, काम करना और करवाना जानती हैं;
फलस्वरूप प्रत्येक मनवांछित उद्देश्य को प्राप्त कर लेती हैं। उनकी मान्यता है कि ”दुःख में दुःखी नहीं होना चाहिए। यह सोचकर सुख लो कि पुराने दुष्कर्म भस्म हो रहे हैं।“ ”वही कोयला हीरा बनता है, जो हज़ारों-हज़ारों वर्षों के दबाव को सह लेता है।“ ”हर चुनौती, हर विपरीत परिस्थिति मुझे अधिक-दृढ़ता व चमक देती है।“ ”अगर लगन सच्ची हो, नीयत में खोट न हो, तो सारी कायनात सहायता करती है।“ उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की इन्हीं खूबियों को लिखकर ही, प्रमिला मांगलिक जी ने, उचित ही, उन्हें ‘खुशबू की डिबिया’ कहा है । सचमुच, ऐसी कर्मठ-समर्थ विभूति ही, किसी भी परिवार-समाज और समिति-संस्था की, आन-बान-शान होती है।
व्यक्तित्व एव कृितत्व
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