जब लगे लगन

सुश्री कुमुद रामानंद बंसल एक बहुमुखी प्रतिभा का सुपरिचित-सुप्रतिष्ठित नाम है, जो साहित्य-जगत् में आदर के साथ लिया जाता है। सर्वप्रथम एक विदुषी सृजनशील-कवयित्री; द्वितीय सोपान एक कुशल प्रशासक; तृतीय सोपान सम्पादन-कला में निष्णात।
जल से कुमुद का अनुराग अनन्य है। इस पृष्ठभूमि में ‘लागी लगन’ पाण्डुलिपि पढ़कर चकित-विस्मित’ अभिभूत हुई। सागर के प्रति उनका प्रेम कितना विस्तार लिए हुए हैं – कितने रंग, रूप, छवियाँ उन्होंने शब्दों में उतार कर रख दी हैं। एक साधारण पाठक (मुझ जैसा) तो डूबकर रह जाता है।
‘वियोग’ उन्हीं के हाइकु में ‘सिन्धु की बातें/बाँध लाई गठरी/कटती रातें।’ यही नहीं, एक मौलिक उद्भावना का अछूता-अनूठा रंग है – ‘अद्भुत है/ये फकीर मस्ताना/लहरें बाना।’ कहाँ तक गिनाया जाए? सागर और सागर-प्रेम की ‘कथा अनन्ता’ है…. सागर है तो तट है, तट है तो ‘तरंग’ को देखकर मन बहका-बहका सा हो जाता है, यही नहीं, ‘उर्मि’ को लुभाने के लिए वह ‘तरुवर गहने’ भी पहनकर सज जाता है। तरंग, लहर, उर्मि, वीचि जैसे प्रयोग वही कवि पृथक् व साभिप्राय रूप में कर सकता है, जिसकी ‘शब्द’ की आत्मा से आत्मीयता हो।
‘विविध’ शीर्षक के अन्तर्गत हाइकु बहुआयामी हैं – कर्म सिन्द्धात, न्याय दर्शन है, राम कथा है, जीवन-मृत्यु संकेत है, विश्व-व्यापी समस्या पर्यावरण-संरक्षण पर चिन्तन है; अतः तथ्यपरकता एवं गद्यात्मकता के समीप जाने की चेष्टा करते प्रतीत होते हैं। विस्तार न कर, समापन करूँ –
कुमुद जी को कविता से प्यार है, सच्चा लगाव! यश, कीर्ति, प्रतिष्ठा, सम्मान – किसी प्रकार का अर्जन काम्य नहीं; जहाँ सच हो, सर्वोच्च उपलब्धि स्वयमेव में हो जाती है। अपना ‘जीवन-सूत्र’ एक नन्हें-से हाइकु में सस्नेह उन्हें सौंपती हूँ –

सब पा लिया
कविता से प्यार है
शेष क्या रहा

डॉ. सुधा गुप्ता

Posted in Kumud ki kalam.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *